Chapter Six - Day Four At Hospital | Day One Of Chemotherapy

 

अगले दिन सुबह हम दोनों फिर हॉस्पिटल पहुँचे।
इस बार हमारी ओपीडी दूसरे फ़्लोर पर थी।
ग्राउंड फ़्लोर पर पर्चा बनवाने के बाद हम ऊपर चले गए।
उस दिन जीजा जी भी हमारे साथ थे।

पिता जी को ओपीडी के बाहर बैठाकर
मैं और जीजा जी एक कोने में खड़े होकर बात करने लगे।
ओपीडी के बाहर इतनी भीड़ थी जैसे हर किसी की ज़िंदगी वहाँ किसी न किसी उम्मीद से जुड़ी हो।
मौसम भी बदल रहा था —
ठंड की जगह अब हल्की गर्मी ने ले ली थी।
वातावरण में बेचैनी और थकान दोनों थी।

करीब शाम के 4 बजे हमारा नंबर आया।
डॉक्टर ने रिपोर्ट्स देखीं और कुछ पल चुप रहे।
फिर उन्होंने कहा,
“एक जांच और करवानी होगी — तुरंत। उसके बाद इलाज शुरू करेंगे।”

उसी बीच पिता जी के बाएँ गाल में एक दाना-सा उभर आया था
जो अब फूट चुका था।
जब वो पानी पीते, तो वह दाना रिसने लगता —
और पानी बाहर निकल आता।
उन्हें तकलीफ़ हो रही थी,
पर वो फिर भी कुछ नहीं बोलते थे।

डॉक्टर ने गंभीरता से कहा,
“कीमोथेरेपी आज से ही शुरू करनी पड़ेगी। पहले FNAC जांच करवा कर लाओ, फिर हम एडमिट करते हैं।”
उन्होंने कुछ और ब्लड टेस्ट भी लिख दिए।

हमने तुरंत ब्लड सैंपल दिलवाया।
फिर मैं और जीजा जी सैंपल जमा करने गए।
वहाँ भी इतनी भीड़ थी कि ऐसा लग रहा था —
जैसे पूरा उत्तर प्रदेश बीमार हो गया हो।

सैंपल देने के बाद जब पूछा कि रिपोर्ट कब मिलेगी,
तो जवाब मिला —
“रात 2 बजे तक।”

अब हम तीनों उस विभाग में पहुँचे
जहाँ कीमोथेरेपी वाले मरीजों को भर्ती किया जाता था।
वार्ड पूरा भरा हुआ था —
हर बेड पर कोई न कोई दर्द से जूझ रहा था,
हर चेहरे पर डर और उम्मीद साथ-साथ थे।

काफ़ी देर इंतज़ार के बाद
रात करीब 12 बजे हमें एक बेड मिला।
हमने पिता जी का सामान वहाँ रख दिया।
थोड़ी राहत मिली कि अब जगह मिल गई है।

फिर हम तीनों नीचे आए —
हॉस्पिटल के ठीक सामने कुछ खाने की दुकानें लगी थीं।
वहीं सड़क किनारे बैठकर हमने खाना खाया।
थकान इतनी थी कि कोई बात करने का मन भी नहीं था।

खाने के बाद पिता जी को बेड पर छोड़कर
मैं और जीजा जी वार्ड से बाहर आ गए।
बाहर थोड़ी खाली जगह मिली तो वहीं एक पॉलीथिन बिछाकर लेट गए।
नींद कहाँ आने वाली थी…
कभी उठते, कभी बैठते,
कभी वार्ड की तरफ देखते, कभी आसमान की तरफ।

कुछ देर बाद वहाँ मन नहीं लगा,
तो नीचे आ गए और बाहर की सड़क पर टहलने लगे।
समय धीरे-धीरे खिंचता गया…
कभी घड़ी देखी — तो 2 बज चुके थे।

हम दोनों ब्लड रिपोर्ट लेने चले गए।
रिपोर्ट तो मिल गई,
लेकिन जब वार्ड में पहुँचे तो वहाँ कोई डॉक्टर नहीं था।
चारों तरफ सन्नाटा था,
बस मशीनों की बीप और दूर से आती थकी आवाज़ें सुनाई दे रही थीं।

हम फिर नीचे आ गए…
और उस रात को ऐसे ही काटा —
नींद, थकान और चिंता — तीनों के बीच झूलते हुए।

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