रात कब बीत गई, पता ही नहीं चला।
अब सुबह के 6 बज चुके थे, हॉस्पिटल का माहौल फिर से जीवंत हो रहा था।
डॉक्टरों का आना-जाना शुरू हो चुका था।
हमने जैसे ही डॉक्टर को देखा, तुरंत रिपोर्ट्स दिखाईं और कहा,
“डॉक्टर समीर ने कहा था कि आज से कीमो शुरू करनी है।”
उन्होंने FNAC रिपोर्ट मांगी — क्योंकि उसी के आधार पर कीमो शुरू होनी थी।
रिपोर्ट देखकर बोले,
“बेड अलॉट हो गया है ना? वहीं रुकिए, मैं पर्चा लिख देता हूँ।
दवा लाकर ले आइए, एक दवा यहीं देने आएगा, उसे पैसे देकर ले लेना।”
हम तीनों — मैं, जीजा जी और पिता जी —
बेड के पास ही बैठकर इंतज़ार करने लगे।
करीब 45 मिनट बाद दवा का पर्चा मिला।
मैं तुरंत नीचे फार्मेसी की ओर भागा, दवा ली और वापस लौट आया।
लेकिन जब लौटा तो वार्ड में कोई डॉक्टर नहीं था।
थोड़ी देर बाद एक नर्स आई और बोली,
“कीमो लगनी है?”
मैंने कहा, “हाँ।”
वो बोली,
“पहली कीमो है?”
मैंने फिर कहा, “हाँ।”
वो सिर हिलाकर मुस्कुराई — शायद उस मुस्कान में हौसला था।
उसने NS (Normal Saline) की बोतलों में दवा मिलाई,
सब कुछ तैयार किया और कहा,
“थोड़ी देर में एक और दवा आएगी, कोई नाम पुकारेगा —
लेकर मुझे देना।”
थोड़ी ही देर में पहली बोतल लगनी शुरू हो गई।
धीरे-धीरे दवा पिता जी की नसों में उतरने लगी।
मैं पास ही बैठा था, हर मिनट बस उन्हें देख रहा था —
उनके चेहरे पर कभी हल्की झपकी आती, कभी बेचैनी झलकती।
करीब आधी बोतल ही चढ़ी थी कि एक लड़का आया और बोला,
“फलां नाम किसका है?”
मैं तुरंत उठा —
वो बोला,
“डॉक्टर ने यह इंजेक्शन भेजा है, इसके ₹6,500 देने हैं।”
मैंने पैसे दिए और इंजेक्शन लिया।
नर्स को जाकर बताया,
वो आई और कुछ ही देर में उसने वह इंजेक्शन बोतल में मिला दिया।
उस समय पिता जी को 500ml की 7 बोतलें और 200ml की 1 बोतल लगनी थीं।
मैंने नर्स से पूछा,
“ये सब खत्म होने में कितना वक्त लगेगा?”
वो बोली,
“पहली बार में 7 से 8 घंटे लगते हैं।”
धीरे-धीरे समय बीतता गया।
अब दोपहर के 3 बज चुके थे,
पहली बोतल खत्म हो चुकी थी,
और एक लंबा सफ़र बाकी था।
रात तक दवा लगातार चढ़ती रही।
करीब 9 बजे सारी बोतलें खत्म हो गईं।
हमने डॉक्टर को बताया कि हम खाना खाने जा रहे हैं।
डॉक्टर ने कहा,
“ठीक है, खाना खाकर आओ — फिर पेपरवर्क पूरा कर लेते हैं।”
हम तीनों नीचे गए, वही हॉस्पिटल के सामने वाले ढाबे पर खाना खाया।
थकान इतनी थी कि रोटी हाथ में भी भारी लग रही थी।
खाना खाकर वापस वार्ड में पहुँचे।
डॉक्टर ने हमें बुलाया,
कीमो कार्ड और डिस्चार्ज बुक दी।
उन्होंने दवाइयों का पूरा कोर्स समझाया और कहा,
“अब आपको डिस्चार्ज किया जा रहा है।
21वें दिन दो ब्लड टेस्ट करवाकर फिर से कीमो वार्ड में आइए —
अगली कीमो उसी दिन लगेगी।”
मैंने उनसे कहा,
“डॉक्टर साहब, हम लोग लखीमपुर से आए हैं।
इस वक्त बाहर कुछ भी नहीं मिलेगा।
कृपया आज की रात यही बेड दे दीजिए,
सुबह निकल जाएंगे।”
वो मान गए।
पर थोड़ी देर बाद एक दूसरे डॉक्टर आए —
शायद नए थे — और ऊँची आवाज़ में बोले।
पिता जी भी थक चुके थे, तो थोड़ा गुस्सा हो गए।
मैं और जीजा जी बीच में आए,
डॉक्टर से धीरे से बात की, समझाया —
और आखिरकार सब शांत हुआ।
हमें रात के लिए बेड रहने दिया गया।
सुबह 5 बजे,
हम तीनों उठे,
बेड छोड़ा, हॉस्पिटल से बाहर निकले
और सीधे रेलवे स्टेशन की ओर चल पड़े।
सुबह 8 बजे की ट्रेन से हम लखीमपुर के लिए रवाना हुए।
घर पहुँचकर सबने चैन की साँस ली।
पिता जी ने थोड़ी देर आराम किया,
और शाम होते-होते जीजा जी भी वापस लौट गए।
उस रात घर में सब कुछ शांत था —
पर मेरे मन में बस एक ही सवाल था…
“क्या अगली कीमो तक सब ठीक रहेगा?”

0 Comments