Chapter Eleven - Hospital Visit with CT Scan Reports

Chapter Eleven – सीटी स्कैन रिपोर्ट के साथ हॉस्पिटल विज़िट

ऑपरेशन से पहले सब कुछ तय हो चुका था।
28 जून को मैं और जीजा जी, डॉक्टर के कहने पर 2 यूनिट ब्लड डोनेट करने गए थे।
डॉक्टर ने बताया था कि सर्जरी से पहले यह ज़रूरी है।

फिर 4 जुलाई को हमारा सर्जरी का इंडेंट दोबारा भेजा गया।
उस दिन डॉक्टर ने हमें एडमिशन और सर्जरी की तारीखें दे दीं —
25 जुलाई को एडमिट होना था और 31 जुलाई को ऑपरेशन तय हुआ।

इंडेंट भेजने के बाद जब हम तीनों हॉस्पिटल से वापस लौट रहे थे,
तो शरीर भले घर लौट आया हो,
पर मन वहीं हॉस्पिटल की गलियों में रह गया था।
अब हर गुजरते दिन के साथ डर और बेचैनी बढ़ती जा रही थी —
क्या होगा ऑपरेशन में? सब ठीक होगा न?

दिन बीतते गए और पता ही नहीं चला कि 25 जुलाई आ गई।
हम तीनों — मैं, पिता जी और माँ — लखनऊ पहुँचे।
डॉक्टर को ब्लड रिपोर्ट्स दिखाईं।
अभी तीन जांचें बाकी थीं — ECG, 2D Echo और Chest X-ray।
डॉक्टर ने मदद की, और सारी टेस्टिंग एक ही दिन में शाम तक करवा दी।
अगले दिन हमें सारी रिपोर्ट्स मिल गईं।

अब बारी थी PAC (Pre-Anesthesia Checkup) की।
हम ओपीडी में गए, और वहाँ पास ही एनेस्थीसिया वाले डॉक्टर का कमरा था।
पिता जी का चेकअप हुआ।

इस बार जीजा जी नहीं आए थे, सिर्फ मैं, पिता जी और माँ थे।
चेकअप खत्म होने के बाद पिता जी ने कहा —
“डॉक्टर से कहो कि हमें कुछ दिन की छुट्टी दे दे।
मेरा मन नहीं लग रहा यहाँ पर…
ऑपरेशन तो 31 तारीख़ को है, तब आ जाएँगे।”

मैंने वही किया।
मैं डॉक्टर अक्षत मिश्रा से मिला और सारी बात बताई।
उन्होंने मुस्कुराकर कहा,
“कोई बात नहीं, एक एप्लीकेशन लिख दो नर्स इंचार्ज को।
ऑपरेशन की डेट बताओ।”

मैंने कहा — “31 जुलाई।”
उन्होंने जवाब दिया —
“ठीक है, 30 जुलाई को आ जाना एडमिट होने।”

हमने एप्लीकेशन लिखकर जमा की और घर लौट आए।
अब 26 से 30 जुलाई कैसे बीत गए —
पता ही नहीं चला।
मन में बस एक ही भावना थी —
जैसे किसी सफ़र पर जा रहे हों,
जहाँ से लौटने की गारंटी नहीं।


30 जुलाई को हम तीनों — माँ, पिता जी और मैं
फिर लखनऊ पहुँचे और हॉस्पिटल में एडमिट हो गए।
पर अंदर से एक और चिंता उठ रही थी —
“क्या ऑपरेशन का समान आया होगा?”

मैं पिता जी को हॉस्पिटल में छोड़कर
पीआरओ ऑफिस गया यह पता करने कि
सर्जरी का इंडेंट और सामान आया या नहीं।
वहाँ जवाब मिला —
“अभी नहीं आया।”

चिंता और बढ़ गई।
फिर मैं एचआरएफ ऑफिस गया।
वहाँ के अधिकारी ने कहा,
“हम बात करेंगे, कोशिश करेंगे कि जल्दी आ जाए।”

शाम तक मैं फिर से पूछने गया।
तब जाकर पता चला —
“सर्जरी का सामान मेन ऑफिस में तो आ गया है,
लेकिन पीआरओ ऑफिस में अभी पहुँचा नहीं है।”

मैंने कहा,
“मुझे आज ही समान चाहिए,
कल मेरे पिता जी का ऑपरेशन है।
कृपया कॉल करके बताइए,
हम खुद जाकर ले आएँगे।”

वो लोग बहुत मददगार निकले।
समान की जो आखिरी बैच आनी थी,
उसी में हमारा समान था।
उन्होंने कहा,
“सिर्फ नर्स इंचार्ज के सिग्नेचर रह गए हैं।”

मैं दौड़ पड़ा सिग्नेचर करवाने —
और वापस आते ही फोन बजा।
“ऑफिस बंद होने का समय हो गया है, जल्दी आओ!”
मैं भागता हुआ पहुँचा।
समान सिर्फ मेरा नहीं, औरों का भी था,
फिर भी मैंने सब अपने साथ उठा लिया।
किसी तरह ऑटो लेकर
एक बिल्डिंग से दूसरी बिल्डिंग पहुँचा
और वार्ड तक सामान पहुँचाया।


थोड़ी देर बैठने के बाद
डॉक्टरों का वार्ड राउंड शुरू हुआ।
सबको बाहर कर दिया गया।
फिर रात में जब सब वापस आए,
तो डॉक्टरों ने सभी मरीजों का सामान देखा।
हमने अपना भी दिखाया —
उन्होंने ऑपरेशन का सामान अलग किया
और दवाइयाँ अलग रखवा दीं।

करीब रात 1 बजे
एक डॉक्टर आया फाइल बनाने के लिए।
उन्होंने सब दस्तावेज समझाए,
हर सवाल का जवाब दिया,
और आखिर में एक कंसेंट फॉर्म बढ़ाया।
मैंने पिता जी की ओर देखा,
उन्होंने सिर हिलाया —
और मैंने साइन कर दिया।

अब बस सुबह का इंतज़ार था…
वो सुबह, जो हमारे जीवन की दिशा तय करने वाली थी।


यह कहानी अब एक ऐसे मोड़ पर है,
जहाँ हर शब्द भावनाओं से भरा हुआ है।
हर याद एक परीक्षा बन गई है।
इसलिए अगले अध्याय को लिखने में
मुझे थोड़ा समय चाहिए —
ताकि मैं इस कहानी को उसी सच्चाई और भाव से आगे लिख सकूँ।

🙏 आपका धैर्य ही मेरी ताकत है — जल्द ही मैं अगला अध्याय आपके सामने रखूंगा।

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