कहानी शुरू करने से पहले, मैं चाहता हूँ कि आप मुझे थोड़ा जान लें।
मैं लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश का 24 वर्षीय लड़का हूँ — और यह कहानी मेरे पिता जी की है, एक ऐसी कहानी जिसने मेरी ज़िंदगी की दिशा हमेशा के लिए बदल दी।
उस दिन मैं हमेशा की तरह लखीमपुर के एक स्कूल में अपनी ड्यूटी कर रहा था।
12 मार्च 2024 — तारीख़ आज भी दिमाग़ में ऐसे दर्ज है जैसे कल की बात हो।
क्लास के बीच में अचानक मेरे फोन पर कॉल आया — पिता जी के एक पुराने मित्र का था।
पिता जी के मित्र: “हेलो बेटा, कहाँ हो अभी तुम?”
मैं: “अंकल नमस्ते! मैं तो स्कूल में हूँ।”
पिता जी के मित्र: “मैं तुमसे थोड़ी जरूरी बात करना चाहता हूँ, क्या तुम स्कूल के बाद मेरे घर आ सकते हो?”
मैं: “हाँ अंकल, स्कूल खत्म होते ही आता हूँ... लेकिन बात क्या है?”
पिता जी के मित्र: “फोन पर नहीं बता सकता बेटा, तुम सामने आओ तब बताता हूँ।”
मैं: “ठीक है अंकल।”
फोन कट गया...
दिल में हल्का सा बेचैनी का एहसास हुआ, पर फिर खुद को संभाल लिया — “शायद कोई छोटी-मोटी बात होगी,” मैंने सोचा, और काम में लग गया।
शाम हुई, स्कूल खत्म हुआ।
मैं तुरंत निकल पड़ा अंकल के घर की ओर — वो स्कूल से कुछ ही दूरी पर रहते थे।
दरवाज़ा खुलते ही उन्होंने कहा,
“आओ बेटा, बैठो... बात करनी है।”
मैं उनके सामने बैठ गया — उनके चेहरे पर एक अजीब सी गंभीरता थी, जैसे शब्द गले में अटके हों।
अंकल बोले: “आज तुम्हारे पिता जी और मैं डॉक्टर के पास गए थे…”
(पिता जी अक्सर दूसरों की मदद के लिए अस्पताल या किसी के काम में जाया करते थे, इसलिए पहले तो मैंने सोचा, शायद किसी और की बात होगी।)
मैं: “अच्छा! फिर?”
अंकल: “डॉक्टर ने तुम्हारे पिता को लखनऊ में दिखाने को कहा है…”
मैं (थोड़ा चौंकते हुए): “किस लिए?”
अंकल (धीरे से): “डॉक्टर ने बताया है कि उन्हें... कैंसर है।
लेकिन कहा है कि 60% तक उम्मीद है, अभी बहुत आगे नहीं बढ़ा है। बेटा, तुम अपने पिता से बात करना, उन्हें तैयार करना कि वो लखनऊ जाकर इलाज करवा लें।”
कुछ पल के लिए सब कुछ जैसे रुक गया...
कमरे की आवाज़ें, हवा की हलचल — सब एकदम शांत।
मैं कुछ कह नहीं पाया। बस “ठीक है अंकल…” इतना ही निकल सका मुँह से।
अंकल: “बेटा परेशान मत होना, सब ठीक हो जाएगा। तुम बस घर जाओ, अपने पिता से बात करो।”
मैंने सिर हिलाया और वहाँ से निकल पड़ा।
रास्ते भर बस एक ही सवाल मन में घूमता रहा — “क्या सच में मेरे पिता जी को कैंसर है?”
हर कदम के साथ दिल की धड़कन तेज़ होती गई…
और उसी के साथ मेरी ज़िंदगी की सबसे कठिन यात्रा — अनजाने में — शुरू हो चुकी थी।

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