जब मैं घर पहुँचा, पिता जी अपने कमरे में आराम कर रहे थे।
मैं कुछ देर चुपचाप बैठा रहा, फिर हिम्मत जुटाकर उनके कमरे में गया और बात शुरू की।
मैं: “आज आप डॉक्टर के पास गए थे... क्या हुआ वहाँ?”
पिता जी: “कुछ नहीं बेटा, बस ऐसे ही चला गया था।”
मैं: “अंकल का फोन आया था मेरे पास — उन्होंने सब बताया है।”
पिता जी (थोड़ा असहज होकर): “क्या बताया उन्होंने?”
मैं: “उन्होंने बताया कि डॉक्टर ने आपको लखनऊ जाकर दिखाने को कहा है... क्यों?”
पिता जी कुछ पल चुप रहे — जैसे शब्द उनके गले में अटक गए हों।
बस इतना कहा, “कुछ नहीं बोले वो… मौन थे।”
मैंने दृढ़ आवाज़ में कहा,
“कल हम दोनों लखनऊ चल रहे हैं — मेडिकल कॉलेज में दिखाएँगे। बस, यह फाइनल है।”
पिता जी ने कुछ मना करने की कोशिश की, लेकिन मैंने उन्हें रोकते हुए कहा,
“नहीं पापा, अब कुछ नहीं सुनना है। कल हम चल रहे हैं।”
इतने में माँ कमरे में आ गईं,
माँ: “क्या बात है बेटा? तुम इतने परेशान क्यों हो, आवाज़ ऊँची क्यों कर रहे हो?”
मैंने थोड़ा रुककर कहा,
“माँ... इन्हें कैंसर है। और ये बात अब तक हम सबसे छुपा रहे थे।”
माँ कुछ पल के लिए शांत रहीं। बस बोलीं,
“अच्छा…”
उनकी आँखों में डर और चिंता साफ झलक रही थी।
मैंने तुरंत मोबाइल उठाया और गूगल पर लखनऊ मेडिकल कॉलेज का नंबर ढूँढा।
वहाँ कॉल करके पिता जी का विवरण दिया और रजिस्ट्रेशन करवा लिया।
माँ: “अब क्या होगा बेटा? सब ठीक हो जाएगा ना?”
मैं: “पहले चलो वहाँ, डॉक्टर क्या कहते हैं देखते हैं। उसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है।”
माँ ने चुपचाप बैग पैक करना शुरू कर दिया।
बीच-बीच में पूछतीं,
“कोई दिक्कत वाली बात तो नहीं है ना?”
मैंने उन्हें शांत करते हुए कहा,
“नहीं माँ, बस जांच करनी है। इलाज से सब ठीक हो जाएगा। यहाँ के डॉक्टर ने भी इसलिए लखनऊ भेजा है।”
मेरे मन में बस एक ही बात घूम रही थी —
“भगवान करे, कैंसर की रिपोर्ट में कुछ भी गंभीर न निकले… बस पापा जल्दी ठीक हो जाएँ।”
शाम के करीब 7 बज चुके थे।
क्योंकि मैं स्कूल में काम करता था, इसलिए मुझे वहाँ छुट्टी की सूचना देना जरूरी था।
मैंने प्रिंसिपल मैम को फोन लगाया —
मैं: “गुड इवनिंग मैम।”
मैम: “गुड इवनिंग, हाँ बोलो।”
मैं: “मुझे कल के लिए छुट्टी चाहिए। मुझे पापा को लखनऊ लेकर जाना है, उन्हें डॉक्टर को दिखाना है।”
मैम: “ठीक है, एक एप्लिकेशन लिखकर व्हाट्सएप पर भेज दो।”
मैं: “जी मैम।”
मैंने तुरंत एप्लिकेशन लिखकर व्हाट्सएप पर भेज दी।
थोड़ी देर बाद उनका रिप्लाई आया — “OK”।
अब तक हमारा और पिता जी का बैग पूरी तरह तैयार था।
इतने में मेरी बहन का फोन आया।
माँ ने उसे सारी बात बता दी। कुछ देर बाद जीजा जी का कॉल आया।
मैं: “नमस्ते जीजा जी।”
जीजा जी: “क्या बात है बेटा, तुम्हारी दीदी ने बताया... क्या हुआ अचानक से?”
मैं: “मुझे खुद नहीं समझ आ रहा कुछ... बस इतना पता है कि कल हम पापा को लेकर लखनऊ जा रहे हैं। बाकी जो भी होगा, लौटकर बताऊँगा।”
जीजा जी: “ठीक है बेटा, परेशान मत होना... सब ठीक होगा।”
मैंने धीरे से “जी” कहा और फोन रख दिया।
कमरे में अब सन्नाटा था...
बस घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे रही थी — और मन में एक ही प्रार्थना —
“कल की सुबह अच्छी ख़बर लेकर आए…”

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