Chapter Eight - Second Chemotherapy


21 दिन कब बीत गए, पता ही नहीं चला।

समय जैसे एक ही चक्र में घूम रहा था —
हॉस्पिटल, जांचें, इंतज़ार और उम्मीद।

हम तीनों — मैं, जीजा जी और पिता जी
कीमो की तारीख़ से एक दिन पहले ही हॉस्पिटल पहुँचे।
पहला काम था खून का सैंपल देना
पिता जी अब भी सुई लगने से डरते थे,
हर बार जैसे पहली बार का डर उनके चेहरे पर लौट आता था।

सैंपल देने के बाद हमने नीचे जाकर कुछ खाना खाया।
फिर ओपीडी के बाहर की बेंच पर बैठ गए —
वहीं इंतज़ार करते रहे, वक्त जैसे रुक गया था।

रात के करीब 8 बजे हम तीनों ने खाना खाया।
पिता जी को वार्ड के अंदर सुला दिया,
और मैं और जीजा जी बाहर आकर इंतज़ार करते रहे —
वही हॉस्पिटल का शोर, वही हल्की ठंडक, वही थकान।


सुबह करीब 9 बजे कीमो वार्ड खुला।
धीरे-धीरे सभी मरीज और उनके परिजन इकट्ठा हो गए।
हर किसी की आँखों में वही बेचैनी —
कब डॉक्टर आएँगे, कब नंबर आएगा।

कुछ समय बाद डॉक्टर आने लगे।
हमारा नंबर तीसरा था, जल्दी ही बुलावा आ गया।
डॉक्टर ने पिता जी की ब्लड रिपोर्ट देखी और कहा,
“रिपोर्ट ठीक है, दवा का पर्चा ले आओ, जितनी जल्दी ला सको।”

मैं भागकर नीचे फार्मेसी गया।
करीब 15–20 मिनट में सारी दवा लेकर वापस आया।

पिता जी को इस बार भी बेड अलॉट कर दिया गया।
नर्स ने धीरे-धीरे बोतलें तैयार कीं,
दवाइयाँ NS बॉटल्स में मिलाईं
और कीमो की प्रक्रिया शुरू हो गई।

वही पुराना सिलसिला —
8 से 9 घंटे का लंबा इंतज़ार।
घड़ी की सुइयाँ धीरे-धीरे खिसकती रहीं।

दोपहर करीब 1 या 2 बजे,
भूख लगने लगी।
मैंने नीचे जाकर खाना पैक करवाया।
पिता जी ने इस बार खाने से मना कर दिया —
कहा,
“मन नहीं है कुछ खाने का…”
मैं और जीजा जी चुपचाप खाना खा लिए।
कभी-कभी खाना भी बस एक ज़रूरत लगता है, स्वाद नहीं।

धीरे-धीरे शाम हो गई।
करीब 8 बजे, कीमो खत्म हुई।
हमने फिर कुछ हल्का खाना खाया
और पिता जी को वार्ड में आराम करने दिया।
फिर हम दोनों बाहर निकल गए —
वही सड़कें, वही भीड़, वही हॉस्पिटल की गंध…
बस अब सब कुछ थोड़ा परिचित सा लगने लगा था।


सुबह 5 बजे पिता जी उठ गए।
सब कुछ समेटकर,
6 बजे की ट्रेन से हम तीनों घर के लिए निकल पड़े।

घर पहुँचकर सबने राहत की साँस ली।
लेकिन अब हम जानते थे —
यह राहत बस 21 दिनों की थी,
क्योंकि उसके बाद फिर से
तीसरी कीमोथेरेपी के लिए वही सफ़र दोहराना था।

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