डॉक्टर ने कहा था —
“दो से ढाई हफ्ते बाद सीटी स्कैन करवाकर दिखाना, फिर आगे का फैसला करेंगे।”
तो ठीक दो हफ्ते बाद,
हम दोनों — मैं और पिता जी —
फिर से उसी रास्ते पर निकले,
इस बार सिर्फ सीटी स्कैन करवाने के लिए।
हमें पहले से पता था कि
लखनऊ के चरक हॉस्पिटल में स्कैन जल्दी हो जाता है।
इसलिए सीधा वहीं पहुँचे।
वहाँ पहले बिल करवाया,
और फिर अपनी बारी का इंतज़ार करने लगे।
लाइन लंबी थी।
समय काटने के लिए
मैं और पिता जी बाहर जाकर चाय पीने चले गए।
थोड़ी देर बाद लौटे तो पता चला —
“आपका अगला नंबर है।”
हम तुरंत अंदर गए।
पिता जी ने सीटी स्कैन करवाया।
मैं दरवाज़े के पास खड़ा बस उन्हें देखता रहा —
हर बार की तरह डर और उम्मीद दोनों साथ थे।
जांच पूरी हुई,
तो हमने रिपोर्ट के बारे में पूछा।
वहाँ के कर्मचारी ने कहा,
“तीन से चार दिन में फिल्म और रिपोर्ट दोनों मिल जाएँगी।”
हमने राहत की साँस ली और बाहर आ गए।
अब दोपहर हो चुकी थी,
तो हॉस्पिटल के पास ही बैठकर खाना खाया।
हर कौर के साथ एक ही ख्याल था —
“अब बस रिपोर्ट ठीक आए…”
खाना खाकर हम दोनों पीआरओ ऑफिस गए।
वहाँ यह पता करना था कि
सीएम/पीएम फंड से ऑपरेशन का सामान आया या नहीं।
(डॉक्टर ने पहले बताया था कि सर्जरी के लिए
जरूरी चीज़ें सरकारी फंड से आएँगी।)
ऑफिस में पूछने पर जवाब मिला —
“अभी नहीं आया है।”
ये सुनकर थोड़ा तनाव बढ़ गया।
हम चुपचाप बाहर निकल आए।
थोड़ी देर वहीं पास में समय बिताया,
फिर जब ट्रेन का समय हुआ
तो ऑटो लेकर रेलवे स्टेशन पहुँचे,
टिकट लिया और घर के लिए निकल पड़े।
घर पहुँचते ही माँ ने पूछा,
“ऑपरेशन का सामान आ गया?”
हमने सिर झुका कर कहा,
“अभी नहीं आया, बस सीटी स्कैन हो गया है।”
दिन बीतते गए।
दो दिन बाद मेरे फोन पर एक मैसेज आया —
जिसमें लिखा था कि
“सीएम/पीएम फंड से कुछ सामान आ गया है।”
मुझे उम्मीद जगी —
शायद अब सर्जरी का सामान भी आ गया होगा।
मेरे पास वहाँ के एक कर्मचारी का नंबर था,
मैंने तुरंत उसे फोन किया और पूछा,
“भाई, सर्जरी का समान आया क्या?”
वो बोला,
“अभी सिर्फ दवा आई है।
सर्जरी का कोई सामान नहीं आया।”
मैंने थोड़ा हैरानी में कहा,
“लेकिन मेरा ऑपरेशन होना है,
तो वो कब आएगा?”
वो बोला,
“भाई, यहाँ किसी का भी सर्जरी का सामान नहीं आया है।
अगर जानना है तो खुद आकर देख लो।”
फोन कट गया…
कमरे में सन्नाटा छा गया।
पिता जी पास ही बैठे थे,
उनके चेहरे पर थकावट और सवाल दोनों थे।
मेरे पास कोई जवाब नहीं था —
बस मन में यही चल रहा था कि
अब आगे क्या होगा…?

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